ठंडी सर्द हवा के झोंकें, जिनसे
दरख़्त की टहनियों पे बलखाता ,
रेशम के तारों से जैसे बुना ,
इक प्यारा सा जाला मकड़ी का |
बारिश की कुछ नन्हीं सी बूँदें ,
फंसी जिनमें ओस के जैसी,
डूबते सूरज की किरणें पकड़ सुनहली हो चली हैं,
और लहराती हैं झकोरों की ताल पे |
धुला धुला सा वन सुंदरी का आँचल,
सब्ज पत्तों और चमकीले फूलों की गोट वाला,
बादलों से चाँद झाँकता है चोरी चोरी,
कान्हा ज्यूँ ताक रहा हो नहाती गोपियों को |
अलबेले, मस्ताने झींगुरों की एक गवैया टोली ,
ताल मिलाती झूमते टर्राते मेंढकों से आज |
बादलों की काली छतरी फट गयी है,
और बरसात की झड़ी में भीगते हैं सब जंगल वाले |
मैं मुसाफिर एक अकेला, यायावर सा,
भटक रहा जीवन के घने से वन में,
पहुँच गया यहाँ इन घुमक्कड़ बादलों के संग,
इस जंगल में, बिन बुलाये मेहमाँ की तरह |
यादों का सावन जैसे बरस रहा हो
आँखों से मेरी भी एक नमकीन सी बरसात होती है ,
और बह जाती है जमीं पर, किसी दलदल में खो जाने को |
यूँ रात भी गहरी सी हो चली है , शायद घर मुझे बुला रहा है |
1 comment:
Bahut badiya Gunjan sahib
" बादलों की काली छतरी फट गयी है,
और बरसात की झड़ी में भीगते हैं सब जंगल वाले "
ati uttam !
Post a Comment