Monday, December 28, 2009

Baarish, Jungle aur main



ठंडी सर्द हवा के झोंकें, जिनसे
दरख़्त की टहनियों पे बलखाता ,
रेशम के तारों से जैसे बुना ,
इक प्यारा सा जाला मकड़ी  का |



बारिश की कुछ  नन्हीं सी बूँदें ,
फंसी जिनमें ओस के जैसी,
डूबते सूरज की किरणें पकड़ सुनहली हो चली हैं,
और लहराती हैं झकोरों की ताल पे |



धुला धुला सा वन सुंदरी  का आँचल,
सब्ज पत्तों और चमकीले फूलों की गोट वाला,
बादलों से चाँद झाँकता है चोरी चोरी,
कान्हा ज्यूँ ताक रहा हो नहाती गोपियों को |



अलबेले, मस्ताने झींगुरों की एक गवैया टोली ,
ताल मिलाती झूमते टर्राते मेंढकों से आज |
बादलों की काली छतरी फट गयी है,
और बरसात की झड़ी में भीगते हैं सब जंगल वाले  |



मैं मुसाफिर एक अकेला, यायावर सा,
भटक रहा जीवन के घने से वन में,
पहुँच गया यहाँ इन घुमक्कड़ बादलों के संग,
इस जंगल में, बिन बुलाये मेहमाँ की तरह |



यादों का सावन जैसे बरस रहा हो
आँखों से मेरी भी एक नमकीन सी बरसात होती है ,
और बह जाती है जमीं पर, किसी दलदल में  खो जाने को |
यूँ रात भी गहरी सी हो चली है , शायद घर मुझे बुला रहा है |

1 comment:

The Mellow Coders said...

Bahut badiya Gunjan sahib

" बादलों की काली छतरी फट गयी है,
और बरसात की झड़ी में भीगते हैं सब जंगल वाले "

ati uttam !