Sunday, August 9, 2009

Phool


हर ज़ख्म मेरे दिल में जो लगें हैं,
इक इक क्यारी की तरह हैं ए दोस्त !
अपने दर्दों के बीज बो देता हूँ इनमें ॥
ग़मों की थोड़ी कड़ी सी धूप,
थोड़ी ठंडी छाँव मुस्कुराहटों की,
और कुछ भीगी बरसातें आंसुओं की ...
ये जो तुम कहते हो कि मेरे चेहरे पे हमेशा
फूलों सी प्यारी हँसी खिली रहती है ,
शायद वो बीज अब उग गए हैं .......

1 comment:

The Mellow Coders said...

दर्द के फूल भी खिलते हैं, बिखर जाते हैं,
जख्म कैसे भी हों, कुछ रोज़ में भर जाते हैं |